न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 की धारा 3 के श्रम प्रावधान अनुसार मध्य प्रदेश के ढाई लाख आउटसोर्स कर्मियों का न्यूनतम वेतन पाँच साल बाद वर्ष 2020 में रिवाईज़ हो जाना था, पर यह सातवें साल में भी रिवाईज़ नहीं होने से नाराज़ आउटसोर्स कर्मियों ने अपने कार्यालय के बाहर भिक्षावृत्ति माँगकर प्रांतव्यापी प्रदर्शन किया।
राजधानी भोपाल के गोविन्दपुरा बिजली गेट पर आउटसोर्स कर्मचारी संगठन के प्रांतीय संयोजक मनोज भार्गव के नेतृत्व में कर्मचारियों ने भिक्षावृत्ति प्रदर्शन के बाद मंत्री विश्वास सारंग के हाथों में ज्ञापन सौंपा। श्रम मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह एवं भोपाल सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर के बंगले में भी पहुँचकर ज्ञापन सौंपा।
आंदोलन को संबोधित करते हुए मनोज भार्गव ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव का स्वर्णिम काल चल रहा है, पर मध्य प्रदेश के आउटसोर्स कर्मी ठेकेदारी का विष पी रहे हैं। एक ओर प्रधानमंत्री जी ने 15 अगस्त 2022 को लालकिले की प्राचीर से कहा कि हमें शत् प्रतिशत गुलामी की मानसिकता को तिलांजलि देकर उससे मुक्त होना है, पर मप्र में ढाई लाख आउटसोर्स कर्मी ठेकेदारों की गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए हैं।
मप्र के सभी विभागों, बिजली कम्पनी व अन्य संस्थानों में मानव बल ठेकेदारों का परचम फहरा व लहरा रहा है। इससे देश की युवा धरोहर धराशायी हो रही है। भारत 1947 में अंग्रेजों की दास्तां से मुक्त हो गया, पर अब मप्र में कार्यरत ढाई लाख आउटसोर्स कर्मी ठेकेदारी प्रथा के तहत् पराधीन हैं।
प्रदेश का आउटसोर्स कर्मी चाहता है, उसे ठेका प्रथा से मुक्त कर विभागों से सीधा वेतन मिले। इससे मप्र में ठेकेदारी कमीशन, जीएसटी व टीडीएस के रूप में अपव्यय हो रही 25 प्रतिशत करीब 2300 करोड़ रु. राशि की प्रतिवर्ष बचत होगी और आउटसोर्स कर्मियों का वेतन-बोनस व पीएफ ठेकेदारों द्वारा हड़पने से आर्थिक राहत मिलेगी। इसलिए प्रदेश में आउटसोर्स रिफॉर्म नीति बनाई जाना चाहिए और बढ़ती महँगाई को देखते हुए केन्द्र के आउटसोर्स कर्मी के समान दोगुना मिनिमम वेजेस मप्र में दिया जाना चाहिए।