पिछले दशकों में विद्युत मंडल का विघटन कर बिजली कंपनियां बनाई गईं हैं।
कंपनियों के गठन से पूर्व अधिकारियों कर्मचारियों की पेंशन के लिए कानूनी रूप से फंड की व्यवस्था सरकार को करनी थी, पर सरकारों ने 20 बरसों के लम्बे अंतराल में भी यह कार्य नहीं किया।
आज जो मासिक बिजली बिल वसूला जाता है, उसी से पेंशन दी जा रही है। इस कारण पेंशन में विलंब होता है तथा अनिश्चितता रहती है। जो कानूनी बाध्यता सरकार की है, उसे पूरा करवाने के लिए ही बुजुर्ग कर्मचारियों को आंदोलन की राह पकड़ने की विवशता उत्पन्न हुई है।
भारतीय विद्युत अधिनियम-2003 की धारा 131, 132 एवं 133 में कंपनीकरण के पूर्व सभी व्यवस्थाऐं मप्र शासन को करनी थी। वर्ष 2005 में कंपनी बनी एवं मण्डल से कंपनी में स्थानांतरण की नीति बनी। वर्ष 2012 में मण्डल से कंपनियों में पेंशन की बिना किसी व्यवस्था के स्थानांतरण चालू कर दिए गये, इसलिये अभियंता संघ द्वारा मप्र उच्च न्यायालय जबलपुर में याचिका दायर की गई।
न्यायालय के निर्णयानुसार पहले पेंशन की व्यवस्था हो उसके बाद ही कंपनियों में स्थानांतरण किये जाये। यह निर्देश न्यायालय ने दिए थे। पे एज गो टैरिफ द्वारा पास किया जाता रहा, लेकिन 2012 से 2017 तक फण्ड की कोई व्यवस्था नहीं की गई। नियमों की अनदेखी पर अभियंता संघ की लगातार मांग होती रही, जिसे सरकारी उपेक्षा ही मिली।
पेंशनर्स संगठन की मांग है कि मप्र में भी मप्रराविमं के अधिकारियों-कर्मचारियों की पेंशन उत्तर प्रदेश सरकार एवं उत्तराखण्ड शासन द्वारा जिस तरह ट्रेजरी से प्रदान की जा रही है, उसी तरह मध्य प्रदेश में भी ये पेंशन ट्रेजरी से दी जाए। इस प्रक्रिया में शासन पर किसी भी प्रकार का आर्थिक भार नहीं आयेगा । क्योंकि यह राशि वार्षिक टेरिफ आदेशानुसार बिजली बिल से वसूल की जायेगी, जिसे प्रबंधन द्वारा मासिक प्रक्रिया के अंतर्गत ट्रेजरी में जमा कराया जायेगा।
अभियंता संघ द्वारा नियामक आयोग में G-38/2012 रेगुलेशन न मानने की अवमानना (13/2018) प्रकरण दायर किया गया था। जिसमें अभियंता संघ की जीत के साथ विद्युत कंपनियों के प्रबंध संचालकों पर 1 लाख रुपए की व्यक्तिगत पेनाल्टी लगाते हुये, पूर्ण राशि 1170 करोड़ रुपए जमा करने एवं ट्रांसमिशन कंपनी को पेंशन फण्ड हेतु वास्तविक राशि के आंकलन का आदेश दिया गया था, जो आज तक पूरा नहीं हुआ।
शासन एवं कंपनियों द्वारा नियम कानूनों की लगातार अवहेलना की जा रही है। शासन एवं कंपनियों द्वारा माह सितम्बर-2022 में 52000 पेंशनर्स को, पेंशन की राशि का 10-12 दिन बाद भुगतान करना, शासन एवं कंपनियों की नियति दर्शाती है। जबकि उक्त पेंशन की राशि कंपनियों द्वारा उपभोक्ताओं से वसूल की जा चुकी थी।
पेंशन फोरम सभी कंपनियों में कार्यरत लगभग 15000 विद्युत मण्डल कर्मचारियों के साथ शासन से मांग करता है कि वसूल की गयी बिल राशि ट्रेजरी में जमा कर ट्रेजरी से पेंशन दी जाए। जिससे कर्मचारी सुनिश्चित रिटायरमेंट जीवन जी सकें। बिजली के मुद्दों पर कई सरकारें बदली हैं। यदि समय रहते सरकार नहीं चेती तो इसका खामियाजा सत्तारूढ़ पार्टी को होना तय है।