कार्य के दौरान दिव्यांग हुए बिजली कर्मी को नौकरी से निकाला, MPEBTKS की मांग बनाई जाए HR पॉलिसी

सुप्रसिद्ध शायर बशीर बद्र साहब का एक शेर है-

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में

एक घर बनाना और उसमें गृहस्थी सजाना कितना मुश्किल है, ये एक नौकरीपेशा भलीभांति जानता है, लेकिन जब घर का कमाऊं सदस्य किसी कारणवश गृहस्थी चलाने में असमर्थ हो जाता है, तो पूरा परिवार बिखर जाता है।

मध्यप्रदेश की बिजली कंपनियों में पिछले 15 वर्षों से लगातार आउटसोर्स कर्मी, संविदा कर्मी एवं नियमित कर्मचारी करंट लगकर या दुर्घटना होकर अपंग यानि कि दिव्यांग हो रहे हैं, लेकिन उनके साथ सहानुभूति दिखाने की बजाए कंपनी प्रबंधन उन्हें नौकरी से निकाल रहा है, जिससे वे दर-दर ठोकरें खाने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

इस तरह के अनेक किस्से प्रदेश की बिजली कंपनियों में बिखरे पड़े हैं, जहां नियम विरुद्ध कार्य कराने के दौरान दिव्यांग हुए बिजली कर्मियों पर न सरकार तरस खा रही है और न ही कंपनियों का प्रबंधन संवेदनशीलता दिखा रहा है।

शरीर के किसी अंग के नहीं होने वाले या शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति को कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिव्यांग नाम देते हुए उन्हें विशेष बताया था, लेकिन खुद को सर्वोपरि समझने वाले बिजली अधिकारी न प्रधानमंत्री की बात समझते हैं और न ही अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनते हैं।

मध्य प्रदेश विद्युत मंडल तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रांतीय महासचिव हरेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि उनके संज्ञान में लाया गया है कि विद्युत मंडल की कंपनियों में कार्यरत सैकड़ों आउटसोर्स कर्मी, संविदा कर्मी और नियमित कर्मचारी, जो विद्युत कंपनियों में सेवाकाल के दौरान करंट लगकर या दुर्घटना होने से अपने हाथ-पैर गवां चुके हैं उनको नौकरी से हटाया जा रहा है।

हरेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि इसी तारतम्य में गत दिवस संघ पदाधिकारियों की बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें उपस्थित संघ दाधिकारियों ने सरकार और कंपनी प्रबंधन से मांग की है कि कार्य के दौरान दिव्यांग हुए कर्मियों का नौकरी से न हटाकर, उन्हें उनके अनुरूप कार्य दिया जाए।

हरेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि पावर ट्रांसमिशन कंपनी के संविदा परीक्षण सहायक अनूप सिंह परते, करंट का कार्य करने के दौरान बुरी तरह घायल हो गए थे, उपचार के दौरान अनूप सिंह परते के दोनों पैर काटने पड़े। जिसके बाद ट्रांसमिशन कंपनी के द्वारा अभी तक उसका संविदा अनुबंध आगे नहीं बढ़ाया गया है। उन्होंने कंपनी प्रबंधन से मांग की है कि अनूप सिंह परते का अनुबंध तत्काल बढ़ाया जावे।

इसके साथ ही हरेंद्र श्रीवास्तव ने मांग की, कि विद्युत मंडल की उत्तरवर्ती कंपनियों में कार्यरत संविदा एवं आउटसोर्स अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए मानव संसाधन नीति बनाई जाए। वहीं सबसे कम वेतन पाने वाले आउटसोर्स कर्मियों, जिनको ₹8000 से ₹9000 प्रति माह मिलता है, उनके साथ सभी संविदा एवं नियमित कर्मचारियों का ₹20 लाख का बीमा कराया जावे एवं कैशलेस की सुविधा दी जावे।

संघ के रामसमुझ यादव, शंभू नाथ सिंह, रमेश रजक, केएन लोखंडे, एसके मौर्य, राजकुमार सैनी, अजय कश्यप, लखन सिंह राजपूत, इंद्रपाल सिंह, राजेश डोंगरे, राम केवल यादव, रतिपाल यादव, असलम खान, संदीप दीपंकर, पवन यादव, विपतलाल विश्वकर्मा, अजय मिश्रा, गोमती तिवारी, दशरथ पांडे आदि ने मांग की है कि सभी आउटसोर्स, संविदा एवं नियमित कर्मचारियों का ₹20 लाख का बीमा कराया जावे एवं कैशलेस की सुविधा दी जावे।