बन्द पलके खोल कर जिसको चलना आ गया।
समझ लो बस अब उसको जीवन जीना आ गया।।
बार बार,गिर गिर कर जिसको सम्हलना आ गया।
बस समझ लो अब उसे जीवन मे लड़ना आ गया।।
ढूंड ही लेगा डूबने वाला किनारों को अगर।
डूब कर जिसको तैरने का हुनर आ गया।।
छलने वाले कि परख भी उसके लिए मुश्किल नही।
गिरगिट के समान रंग बदलने वालो को जिसे परखना आ गया।।
उड़ना है तो उड़ परिंदे तू अकेला आकाश में।
हाथ किसी और का पकड़ कर तू कहाँ उड़ पायेगा।।
साहिलों पर जो खड़ा ले रहा मजा डूबने वालो का।
वो समंदर में उतरकर किसी को भी ना बचाएगा।।
भाग्यशाली हर कोई आज अर्जुन सा होगा नही।
सारथी खुद ही अपना बन,तभी तू हर युद्ध को लड़ पाएगा।।
सच्चाई और विश्वास का हनन हर युग मे होगा ही।
हर युग मे कृष्ण जैसा मित्र कोई ना पायेगा।।
युधिस्ठर जैसे सीधे और सच्चे जन्मे हर युग मे मगर।
अर्जुन और भीम जैसे भाई फिर जन्मे ही नही।।
सिर राजमुकुट पहन कर राज करना चाहते आज सभी।
नकुल सहदेव जैसे सेवा करते भाई अब जन्म लेते नही।।
द्रौपदी की लाज हर युग मे लुटती है तो लुटे।
कृष्ण जैसे भाई रूपी मित्र फिर दुनिया मे आये ही नही।।
अपना कृष्ण आज सुदामा को खुद ही बनना होगा।
दुःखो को दूर करने,कृष्ण जैसा मित्र अब ना आएगा।।
-नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद (उप्र)
(सौजन्य साहित्य किरण मंच)