ये माना कि तम है, अँधेरा घना है
मगर दीप की अपनी प्रस्तावना है
ये जीवन की राहें तुम्हें ही बुलायें
सुबह-शाम तुमको ही देती सदायें
जो सुन के भी तुम अनसुना कर रहे हो,
ज़रा उसको समझो यही कामना है
क़दम दर क़दम ठोकरें मिल रहीं हैं
लबों को भी कठिनाइयाँ सिल रहीं हैं,
मगर हार स्वीकार क्यों कर रहे हो,
अभी जीत की पूरी संभावना है
ज़रा हौसलों को जगाकर तो देखो
निराशा के पर्दे हटाकर तो देखो
उम्मीदों का सूरज खिला है गगन में,
ये संकेत जीवन की अवधारणा है
-शीतल वाजपेयी