महाराष्ट्र के रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग, पालघर, ठाणे और रायगढ़ जिलों में पैदा होने वाले अल्फोंसो आम को भौगोलिक चिन्ह (जीआई) के तौर पर पंजीकृत किया गया है। भौगोलिक चिन्ह किसी भी उत्पाद के लिए एक चिन्ह होता है, जो उसकी विशेष भौगोलिक उत्पत्ति, विशेष गुणवत्ता और पहचान के लिए दिया जाता है और यह सिर्फ उसकी उत्पत्ति के आधार पर होता है। ऐसा नाम उस उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी विशेषता को दर्शाता है। दार्जिलिंग चाय, महाबलेश्वर स्ट्रोबैरी, जयपुर की ब्लूपोटेरी, बनारसी साड़ी और तिरूपति के लड्डू कुछ ऐसे उदाहरण है जिन्हें जीआई टैग मिला हुआ है।
अल्फोंसो को आमों का राजा कहा जाता है और महाराष्ट्र में इसे हापुस के नाम से जाना जाता है। इसके लजीज स्वाद, अनोखी खुशबू और चमकदार रंग के चलते इसकी भारत के अलावा अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में काफी मांग हैं। विश्व में यह काफी लंबे समय से मशहूर फल रहा है और इसे जापान, कोरिया तथा यूरोप को निर्यात किया जाता था। हाल ही में अमेरिका और आस्ट्रेलिया ने भी अपने बाजारों में इसके आयात को मंजूरी दी है। भारत में पहला जीआई टैग दार्जिलिंग चाय को 2004 में दिया गया था और देश में इस टैग को हासिल करने वाले कुल उत्पादों की संख्या 325 पहुंच चुकी है।
जीआई उत्पाद दूरदराज के क्षेत्रों में किसानों, बुनकरों शिल्पों और कलाकारों की आय को बढा कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचा सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले कलाकारों के पास बेहतरीन हुनर, विशेष कौशल और पारंपरिक पद्धतियों और विधियों का ज्ञान है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहेता है और इसे सहेज कर रखने तथा बढ़ावा देने की आवश्यकता है। हाल ही में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु ने भारतीय वस्तुओं के भौगोलिक चिन्ह के लिए लोगो और टैगलाइन को लान्च करते हुए कहा था कि इससे कलाकारों की बौद्धिक संपदा का उनका अधिकार तथा उस उत्पाद की उत्पत्ति को सही अधिकार मिल सकेगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह भारत की क्षमता और आकांक्षाओं का क्षेत्र है, जहां हाथ से बने और विनिर्मित उत्पादों को जीआई टैग के जरिए सुरक्षा प्रदान की गई है। औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग ने इस संबंध में अनेक कदम उठाए है और जीआई उत्पादों को सामाजिक एवं आर्थिक रूप से बढ़ावा देने के लिए इनके विपणन की विशेष योजना भी बनाई गई है।