उलझे बालों सी ज़िन्दगी- सुरजीत तरुणा

उलझे बालों
सी ज़िन्दगी

और….
सुलझाने में
चुभते है रोज़
रिश्तों के कंघें

फ़िर उसपे
यह दर्द की
सँवारना है
उन्हें…
तो कसकर
गूँथना है उन्हें

और….
ना खुलें
कोई जोड़
रिश्तों की
चोटी का

तो बाँधनी है
एक फ़ीते से
गाँठ भी

जो दिलों की
गाँठ कभी
खोल नही पाती

पर…
कशमकश
यह कि
हर रोज़
बिख़र ही
जाती है यह

उलझे बालों
सी ज़िन्दगी !!

-सुरजीत तरुणा