उसकी आंखों में एक उदासी सी!
नाव तैरती रहती थी अक्सर।
उसकी आंखें नम हो कर भी!!
दूसरों को धोखा दे जाती थी!
वो मुस्कराना चाहती थी,
अक्सर पर ना जाने,
क्युं वो बैरी सैय्याद,
पंख उसके काट गया।
अक्सर चांद को देखते हुए।
उन्नीदीं आंखों से वह सुबह जागती थी!!
गमों की सफेद चादर ओढ़े हुए।
अंधेरों में खुशियों को तलाशते हुए!!
वो चली थी समंदर को पार करने,
कभी डूबती तो कभी उभरती!!
कभी खारा हो जाती
तो कभी गुड़ जैसी मीठी हो जाती
ऐसी थी उसकी आंखों की उदासी..
कभी नरम नरम सी
कभी उदास उदास सी
-अनु