जब आँसू को बना सियाही कोई अपनी पीर लिखेगा
इतना तय है उसमें केवल गीतों की तकदीर लिखेगा
उम्मीदों की राहों में जब हिम्मत कम पड़ने लगती है
धँसी फाँस के जैसी मंज़िल ख़्वाबों में गड़ने लगती है
तब मन के सब दर्द मिटाकर गीत हौसले उपजाता है
जो भी हरा हार को देगा, गीतों की जागीर लिखेगा
भय ने कभी,कभी मर्यादा ने मेरी आवाज़ दबाई
उसको भी सुन लिया गीत ने जो ये दुनिया सुन ना पाई
बुझे हुये दीपों की गाथा अंधकार में खो ना जाये
इसीलिए तो गीत कल़म को शब्दों की शमशीर लिखेगा
गीत किसी अवसादी मन की बन जाये ना करुण कहानी
हाँ, लेकिन जन-जन के मन की पीड़ा की हो साफ़बयानी
खामोशी को, रुँधे स्वरों को, हरदम गीत शब्द देता है
चाटुकारिता की कविता क्या कोई कभी कबीर लिखेगा
-शीतल वाजपेयी