एसटी-एससी कर्मचारियों को सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने आज 2006 के फैसले को बरकार रखते हुए कहा है कि एम नागराज के फैसले पर दोबारा विचार नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पदोन्नति में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। मामले पर सुनवाई करते हुए पांच जजों की पीठ ने इसे सात जजों की पीठ के पास भेजने से इंकार कर दिया। कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण पर नागराज मामले में फैसले को सही बताते हुए कहा कि इस पर दोबारा से विचार करने की जरूरत नहीं है।
देश के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा कि यह मामला 7 जजों की बेंच को नहीं भेजा जाएगा। संविधान पीठ के फैसले को पढ़ते हुए जस्टिस सीकरी ने कहा कि केंद्र सरकार को पदोन्नति में आरक्षण के पिछड़ेपन के आंकड़े जुटाने की आवश्यकता नहीं है। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार की ओर से पहले कहा गया था कि वह पदोन्नति में आरक्षण के लिए आंकड़े जुटाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने 2006 के केस में एम. नागराज को लेकर फैसला दिया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि क्रीमी लेयर की अवधारणा सरकारी नौकरियों की पदोन्नतियों में एससी-एसटी आरक्षण में लागू नहीं की जा सकती, जैसा अन्य पिछड़ा वर्ग में क्रीमी लेयर को लेकर पहले के दो फैसलों 1992 के इंद्रा साहनी व अन्य बनाम केंद्र सरकार (मंडल आयोग फैसला) और 2005 के ईवी चिन्नैय्या बनाम आंध्र प्रदेश के फैसले में कहा गया था।
इस मामले में पिछली सुनवाई में पक्षकारों के वकील शांति भूषण ने नागराज के फैसले पर पुनर्विचार को लेकर केंद्र सरकार की याचिका का विरोध किया था। भूषण ने कहा था कि यह वोट बैंक की राजनीति है और इस मुद्दे को राजनीतिक बनाने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा था कि पदोन्नति में कोटा अनुच्छेद 16 (4) के तहत संरक्षित नहीं है, जहां क्रीमी लेयर की अवधारणा आ जाएगी। भूषण ने कहा था कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में एससी-एसटी के लिए कोटा अनिवार्य करने की अनुमति नहीं दी जा सकती और ये संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करेगा। भूषण ने नागराज के फैसले को न्यायसंगत ठहराते हुए कहा था कि क्या एससी-एसटी के लिए सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण विभिन्न कैडरों या सेवाओं में उनके प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के डेटा के बिना प्रदान किया जा सकता है? दरअसल, इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 2006 में नागराज मामले में आया फैसला एससी-एसटी कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण दिए जाने में बाधा डाल रहा है। लिहाजा इस फैसले पर फिर से विचार की ज़रूरत है। अटॉनी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि इस फैसले मेंआरक्षण दिए जाने के लिए दी गई शर्तो पर हर केस के लिए अमल करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है। केंद्र सरकार ने कहा था कि 2006 में आए इस फैसले में कहा गया था कि प्रमोशन में रिजर्वेशन देने से पहले ये साबित करना होगा कि सेवा में एससी-एसटी का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है और इसके लिए डेटा देना हो।
केंद्र सरकार की ओर से पेश अर्टनी जनरल ने कहा था कि एससी-एसटी समुदाय सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़ा रहा है और एससी-एसटी में पिछड़ेपन को साबित करने की ज़रूरत नहीं है। अर्टनी जनरल ने कहा था कि 1000 साल से एससी-एसटी जो भुगत रहे है, उसे संतुलित करने के लिए एससी-एसटी को आरक्षण दिया है, ये लोग आज भी उत्पीड़न के शिकार हो रहे है। 2006 के एम नागराज फैसले पर सवाल उठाते हुए अटॉनी जनरल ने कहा था कि इस फैसले में आरक्षण दिए जाने के लिए दी गई शर्तो पर हर केस के लिए अमल करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है। आप एससी-एसटी को नौकरियों में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को कैसे साबित करेंगे। क्या ये हर पद के लिए होगा? क्या पूरे विभाग के लिए होगा। ये सारे फैक्टर कैसे निर्धारित होंगे। अर्टनी जनरल ने बताया कि सरकार एससी-एसटी समुदाय के लिए सरकारी नौकरियों में 22.5 फीसदी पदों पर प्रमोशन में आरक्षण चाहती है, केवल यही संख्या नौकरियों में उनके वाजिब प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित कर सकती है।