सुहागिन महिलाओं द्वारा पति की दीर्घायु और स्वास्थ्य कामना के लिए किया जाने वाला करवा चौथ का व्रत इस वर्ष विशेष फलदायी है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को मनाया जाने वाला करवाचौथ 27 अक्तूबर को है। इस दिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखकर चांद को अर्घ्य प्रदान करती हैं। 27 वर्ष बाद करवा चौथ पर इस बार अमृत सिद्धि व सर्वार्थ सिद्धि का विशेष संयोग बन रहा है। करवा चौथ पर अमृत सिद्धि और सर्वार्थ सिद्धि के दुर्लभ योग होने से यह महिलाओं के सौभाग्य कामना के लिए विशेष उत्तम रहेगा। इससे पहले यह विशेष संयोग 1991 में बना था। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार अनेक वर्षों के बाद करवाचौथ पर बन रहे विशेष संयोग से व्रती महिलाओं को विशेष फल मिलेगा। ऐसा संयोग इसके पश्चात 16 वर्ष बाद आएगा। पूजा का शुभ मुहूर्त 27 अक्टूबर को शाम 5:40 से 6:48 तक है, वहीं चंद्रोदय रात 8:15 बजे होगा।
शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश की अर्चना की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अर्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। इस दिन भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा का पूजन करें। पूजन करने के लिए बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर उपरोक्त वर्णित सभी देवों को स्थापित करें। शुद्ध घी में आटे को सेंककर उसमें शक्कर अथवा खांड मिलाकर मोदक (लड्डू) नैवेद्य हेतु बनाएँ। काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के करवे अथवा तांबे के बने हुए करवे। 10 अथवा 13 करवे अपनी सामर्थ्य अनुसार रखें। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करकचतुर्थी (करवा-चौथ) व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत रखती हैं। बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें। पश्चात यथाशक्ति देवों का पूजन करें। वर्तमान समय में करवाचौथ व्रतोत्सव ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं।