हालात बड़े सख्त हैं और वक्त कड़ा है
हर कोई यहां देखिए बस ज़िद पे अड़ा है
मंज़िल पे भला कौन इसे याद रखेगा
सदियों से यहीं मील का पत्थर जो गड़ा है
नापें न कभी उम्र किसी शख्स की क़द से
क़िरदार से ही आदमी छोटा या बड़ा है
गज़लों पे मेरी आप यूं ही दाद न देते
आशीष हर इक लफ्ज़ नगीने से जड़ा है।
-आशीष दशोत्तर
12/2, कोमल नगर
रतलाम (मप्र)
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