चाहत के फ़लसफ़े की कहीं तो किताब हो
दिल की उदासियों का जहाँ कुछ हिसाब हो
नश्तर चुभा के ज़ख़्मों पे तुम नून मल रहे
जाने क्यूँ कह रहे हैं सभी तुम गुलाब हो
आगाज़ इश्क़ का ये तिरे रूप से हुआ
तुम नूर हो खुदा का सनम लाजवाब हो
मुखड़ा छुपा के चाँद सा क्यूँ है रखा हुआ
है आज तुमको मेरी क़सम बेहिज़ाब हो
पक्का नशा है आपकी नज़रों में जाम का
जिसका उतारा हो न सके वो शराब हो
पाठक की जिन्दगी है अमावस तेरे बिना
तुम चाँदनी मेरी हो मेरा आफ़ताब हो
– आनंद पाठक
(साहित्य किरण मंच के सौजन्य से)