सुनो कहीं लिख न दूँ
तुम्हारे माथे पे प्यार मैं
अपने लबों से चूम के तुमको
खुद से ही न जाऊँ हार मैं
छोड़ना होगा मोह का बंधन
कही कैद न मैं रह जाऊँ
जो दुर ही जाना है तुमसे तो
क्यों न दर्द अभी मैं सह जाऊँ
चैनो सुकून का नाता है तुमसे
कही रह न जाऊँ बेकरार मैं
अपने लबो से चूम के तुमको
खुद से ही न जाऊँ हार मै
जो हो नही सकता उसके लिए
क्यों अपने हृदय को तड़पाते रहे
क्यों आँखों मे प्रतिक्षा के दीप जले
हम व्यर्थ ही खुद को जलाते रहे
बड़े यत्न से सम्भाला है मन को
अब बिखरने को नहीं तैयार मै
अपने लबो से चूम के तुमको
खुद से ही न जाऊँ हार मै
-रुचि शाही