हंस हंसकर सबको दिखा रहा था
जाने कौन सा दर्द वो छुपा रहा था
गम तो खैर खुद उसका था मगर
किसी और के नाम से बता रहा था
सजदे में था या कि बेहाल भूख से
घुटने पेट में लिए झुका जा रहा था
बेचैनियां भीतर भरी हुई थी उसके
सुकूं बस बाहर ही नजर आ रहा था
खुद उसको जरुरत थी तसल्ली की
तसल्ली जो औरों को दिला रहा था
जर्द हो गया था जो दर्द से,देखा कि
सब को खुश रहना सिखा रहा था
नवाजा था खुदा ने प्रेम से पुष्प को
वो बिखरकर भी ये रीत निभा रहा था
*पुष्प प्रेम