वो जिसका नूर आँखो में उजाला बन के आया है
उसी ने चाँद-तारे टाँक के अम्बर सजाया है
भला ये कैसे तय होगा कि हम में कौन है बेहतर,
बनाया आदमी उसने खुदा हमने बनाया है
यकीं बंदे को है अल्लाह की नज़रे-करम उस पर,
समाया है खुदा उसमें, खुदा में वो समाया है
ज़हर कैसा है, मणि कैसी, किसे फुरसत समझने की,
जहाँ ने सिर्फ़ केंचुल देख कर किस्सा बनाया है
मुझे जो मिल गया किरदार उसको जी लिया मैंने,
ये सब नस्लें करेंगी तय किसे कैसा निभाया है
-शीतल वाजपेयी