दिल से निकली आवाज बस आप को सुनाता हूँ
अपने हर एहसास का हमराज आप को बनाता हूँ
न हों आप तो भी मैं आप में ही खोया रहता हूँ
सुनों ना मैं आपसे कुछ बाते ज़्यादा करता हूं
खुशियां तो आप को कहें बिन अधूरी हीं रहती है
रोजमर्रा की बातों में भी आप की मौजूदगी होती है
दर्द का मरहम आप हीं तो करते हो हरदम
हृदय-पीड़ा को आप से आधा आधा करता हूँ
बेदर्द बेरहम दुनिया के दांव में अकेला जब होता हूँ
दिल को सुकून मिले इसलिए बाते साझा करता हूँ
खुशनसीब हूं कि नि: सर्वार्थ कोई साथ है मेरे
ताउम्र साथ रहने का आपसे वादा करता हूँ
-अनन्त मिश्रा
(साहित्य किरण मंच के सौजन्य से)