सुवासित पुष्पों का उबटन सजाये देखो आई धूप
नवोढा सी लजाती अंगना मेरे भी उतरी धूप
धरा की बाँहों में आ सिमटी बचा सूरज से ये आँखें
सजीली कलियों के कानों मे हँसकर फुसफुसाती धूप
चिरईया सी फुदकती यह सघन कुंजों की डालों पर
कभी फुनगी पे चढ धीरे से झरती गुनगुनाती धूप
चुनरिया ओढे सतरंगी चली इठलाती उपवन को
किसी तितली को छू कर फूलों की बाँहों में बिखरी धूप
पवन से रूठ छिप जाती ये अमराई की छाया में
दबे पैरों आ फिर पीपल तले है मुस्कुराती धूप
कँवल की पंखुरी में देखो चंचल जा छिपी हँसती
नदी के जल से सकुचाती सी निकली है नहाती धूप
सजाये किरनों से अलकें चली यह सद्धःस्नाता अब
जा ठहरी ओस कण पर क्लांत व्याकुल सी ये प्यासी धूप
-सुमन ढींगरा