अपने अंदर के सुख को जब मन से एकाकार किया था
प्रकृति ने मेरी उस क्षण ही प्रथम बार श्रृंगार किया था
दूर धरा को गगन चूमता
था लज्जा की लाली देकर
भंवरों ने कलियों को लूटा
था मन की हरियाली देकर
संगति ने आतुरता का जब सहज सुलभ आभार किया था
प्रकृति ने मेरी उस क्षण ही प्रथम बार श्रृंगार किया था
प्रथम कली पौधे के तन से
उठकर जब मुस्काई थी
माली की मेहनत को विधि की
कैसी सुंदर भरपाई थी
कल ने शायद इन्हीं क्षणों में क्षमता पर अधिकार किया था
प्रकृति ने मेरी उस क्षण ही प्रथम बार श्रृंगार किया था
शिशु के मुख से प्रथम बार जब
माँ का संबोधन उपजा था
श्रद्धा की इक अभिव्यक्ति को
प्रकृति का मानस तरसा था
ममता ने धरती पर जिस पल नेह जगत साकार किया था
प्रकृति ने मेरी उस क्षण ही प्रथम बार श्रृंगार किया था
जब तुषार की कोमलता को
पंखुड़ियों ने सहा सहेजा
सूरज ने अपनी किरणों को
धरती सुबह नहाने भेजा
तुहिना ने उस प्रथम किरण को जिस पल अंगीकार किया था
प्रकृति ने मेरी उस क्षण ही प्रथम बार श्रृंगार किया था
ढल कर आंखों से बूंदों में
अल्हड़ता बरबस ढलकी थी
नेह लिए आँखें यौवन की
मिट जाने को जब छलकी थी
किसी प्रिया ने प्रीतम के उर का जब झंकृत तार किया था
प्रकृति ने मेरी उस क्षण ही प्रथम बार श्रृंगार किया था
-आशुतोष असर