क़दमों की आहटों से अंजान रहे होंगे
ये रास्ते कभी तो सुनसान रहे होंगे
आँखों से लाश की, यूँ आँसू नहीं निकलते
मुर्दा बदन में, ज़िंदा अरमान रहे होंगे
मर कर भी मुहब्बत को ज़िंदा रखा है जिनने
वो लोग कितने भोले-नादान रहे होंगे
दुनिया की भीड़ से जो हटकर हैं उन्हें पढ़ लो
हम पूजते हैं जिनको इंसान रहे होंगे
साहिल पे नाव कोई, यूँ ही नहीं डुबोता
उस नाख़ुदा के दिल में तूफ़ान रहे होंगे
देता है नूर जलकर चाँद और सितारों को
‘सूरज’ पे शाम-ओ-शब के एहसान रहे होंगे
-सूरज राय सूरज