तिरंगे में लिपट कर लौटे
जब भारत मांँ के लाल
दुःख के आगोश में
डूब कर देश हूआ बेहाल
माँ-बाप का देख करुण क्रंदन
हर भारतवासी की हैं आँखे नम
बच्चों का करुण रुदन देख
छलनी हो रहा है मन
शहीद की विधवाओं
के आँसूओं से
भींगा धरती का आँचल
देख उनकी पीड़ा को
समय भी गया सहम कर रुक
मिटा सिंदूर उतरे कंगन
लरजते हाथों से उतरे मंगलसूत्र
दूधमुंहे बच्चों ने अभी
ठीक से आँखो को खोला था
बेदर्दी आतंकियों ने उनके
सिर से छीना पिता का साया
उस नन्हे बालक ने अभी
पिता का मतलब भी न जाना
दो माह की नन्ही उम्र में पड़ा
पिता की चिता को मुखाग्नि देना
तिरंगा लगा सीने से
पिता फफक कर रो उठा
तड़प उठी बेटियां भी
जब साथ बाबुल का छूट गया
यह कैसी विदाई बाबुल से
न मेंहदी लगी न डोली उठी
आंगन से बाबुल की अर्थी उठी
कलेजे का टुकड़ा दूर हूआ
माँ तड़प उठी बेहोश गिरी
साजन का साथ छूटता देख
पत्नी भी चीख कर रो पड़ी
वीरों की शहादत को देख कर
आसमां भी कदम चूम गया
सारी दुनियाँ ने भी अदब से
शहीदों की शहादत को नमन किया
-अनुराधा चौहान