ह्रदय में करुण रागिनी
सांसे विचलित कर जाती
मिटे माटी के लाल
क्यों सुकून की नींद आ जाती?
हाहाकार गूंज रहा कण-कण में
स्मृति दौड़ आ जाती
वेदना असीम ह्रदय की
हवाओं से पैगाम लिखवाती
व्यथा व्योम की सुन
दामन में दर्द छिपाती
जला रहा पद-चिन्ह पूत के
करुणा के आँसू बरसाती
चातक सी वो करुणार्द्र पुकारें
ह्रदय को आहत कर जाती
बेसुध सी सुप्त व्यथाएँ
सिसक-सिसक कर
क्षितिज पटल पर सो जाती
-अनीता सैनी