उन्माद से परिपूर्ण प्रकृति
पल्लवित है बगिया
इतरा रही पेडों की शाखें
कर रही हवा से अठखेलियाँ
कट रही फसलें गेंहू की
उल्लसित है खेत किसान का
टेसुओं ने ओढ़ लिया है
रंग सुहाग का अरमान का
जो बदरंग हुए हैं कुछ
उन पर प्रेम का नवरंग चढ़ाए
रूठों को मनाए, टूटो को अपनाए
आओ मिल कर होली मनाए।
-आनंद चौहान