क़ातिलाना ये अदायें
उफ़ तुम्हारी शान की
अब खुदारा क्या मनाएं
ख़ैर अपनी जान की।।
एक इक सजदा भी अपना
नाम उसके कर दिया
जिस निगाहें ख़ास ने
इस दर्द की पहचान की।।
दे गयी तन्हाइयां
हमको सरे-महफ़िल वो ही
जिनकी ख़ातिर ज़िंदगी की
रौनकें क़ुर्बान की।।
आँसुओं में घुल गए हैं
ख्वाब मिट्टी के मेरे
जुस्तजू इस दिल को है बस
अब किसी श्मशान की।।
जीत की या हार की ।।
अब है फ़िकर किसको यहाँ
आशिक़ी में जब लगा दी
शर्त हमने जान की।।
छोड़ दो मुझ को अकेला
मैं अकेला खुश बहुत
है नहीं दरकार ‘सन्दल’
अब किसी एहसान की।।
-प्रिया सिन्हा ‘सन्दल’