पाँच दिवसीय दीपोत्सव के चौथे दिन यानि दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा की जाती है, इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता हैं। आज भी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में इसे बहुत धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में बहुत महत्व है, यही कारण है कि इसे ग्रामीण क्षेत्रों के साथ महानगरों में भी पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। गोवर्धन पूजा के दिन श्रीकृष्ण, प्रकृति और गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। कथा के अनुसार जब देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया, तब इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्रीकृष्ण ने एक लीला रची। एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे। श्रीकृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया कि मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं। श्रीकृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं। मैया के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? मईया ने कहा वह वर्षा करते हैं, जिससे अन्न की पैदावार होती है। उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गायें वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं, अत: ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए।
श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर से सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्घन पर्वत की पूजा की। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कहने लगे कि इनका कहा मानने से ये सब हुआ है। तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया। इन्द्र श्रीकृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए तथा वर्षा और तेज हो गयी। इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।
इन्द्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता, अत: वे ब्रह्मा के पास पहुंचे और सारा वृतान्त कह सुनाया। ब्रह्मा ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं। वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं और पूर्ण पुरूषोत्तम नारायण हैं। ब्रह्मा के मुंख से यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और श्रीकृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया। इस के बाद से ही गोवर्घन पूजा की जाने लगी। बृजवासी इस दिन गोवर्घन पर्वत की पूजा करते हैं। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है। वहीं श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत को छप्पन तरह के पकवान का भोग लगाया जाता है।