गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वरः
गुरुर साक्षात परम ब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः
गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर बताया गया है, क्योंकि गुरु ही हैं जो इस संसार रूपी भव सागर को पार करने में सहायता करते हैं। गुरु के ज्ञान और दिखाए गए मार्ग पर चलकर व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है। हर वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा को गुरु का पूजन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिवस भी गुरु पूर्णिमा के दिन माना जाता है। वे संस्कृत के महान विद्वान थे और महाभारत जैसा महाकाव्य उन्होंने ही लिखा था। इसी के अठारहवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण गीता का उपदेश देते हैं।
सभी 18 पुराणों का रचयिता भी महर्षि वेदव्यास को माना जाता है। वेदों को विभाजित करने का श्रेय भी इन्हीं को दिया जाता है। इसी कारण इनका नाम वेदव्यास पड़ा था। वेदव्यास को आदिगुरु भी कहा जाता है, इसलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा शुक्रवार 23 जुलाई को सुबह 10:43 बजे से शुरू होगी, जो कि 24 जुलाई की सुबह 8:06 बजे तक रहेगी। उदया तिथि में पूर्णिमा मनाए जाने के कारण यह शनिवार 24 जुलाई को मनाई जाएगी।
गुरु पूर्णिमा के दिन सर्वार्थ सिद्धि और प्रीति योग का शुभ संयोग बन रहा है। 24 जुलाई को सुबह 6:12 बजे से प्रीति योग लगेगा, जो कि 25 जुलाई की सुबह 3:16 बजे तक रहेगा। इस दिन दोपहर 12:40 बजे से अगले दिन 25 जुलाई को सुबह 5:39 बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। ये दोनों योग शुभ कार्यों की सिद्धि के लिए उत्तम माने जाते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन राहुकाल सुबह 9:03 बजे से सुबह 10:45 मिनट तक रहेगा। इस दौरान शुभ कार्यों की मनाही होती है।