सितंबर माह के प्रमुख व्रत और त्यौहार। हमारे मनीषियों ने व्रत एवं त्योहारों को इस तरह से बनाया था कि उससे हमारा दैविक एवं दैहिक स्वास्थ्य निरंतर ठीक रहे।
अनंत चौदस-
अनंत चतुर्दशी का त्योहार 1 सितंबर को पड़ रहा है। यह व्रत भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। इसके लिए चतुर्दशी तिथि सूर्योदय के पश्चात दो मुहूर्त में व्याप्त होनी चाहिए। यदि चतुर्दशी तिथि सूर्योदय के बाद दो मुहूर्त से पहले समाप्त हो जाए तो अनंत चतुर्दशी का व्रत 1 दिन पहले मनाया जाएगा। अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की कथा होती है। इस दिन उदया तिथि से लिया जाता है। इस दिन अनंत भगवान का व्रत रखा जाता है। इस त्यौहार की विशेष बात है कि इस दिन अनुष्ठान करने के उपरांत 14 गांठ वाला डोरा हाथ में बांधा जाता है। यह 14 गाठें 14 लोकों का प्रतीक है। ऐसा प्रतीत होता है की हिंदू धर्म के अनुसार 14 लोक अर्थात 14 ब्रम्हाण्ड की कल्पना की गई है। वर्तमान साइंस पहले एक ही ब्राह्मण्ड मानता था परंतु वह भी अब कई ब्रह्मांड की थ्योरी को मानता है। वर्तमान विज्ञान अभी इतना उन्नत नहीं है कि बता सके की कितने ब्रह्मांड हैं।
क्षमा पर्व या पर्यूषण पर्व-
क्षमा पर्व जैन धर्म का महापर्व है। श्वेतांबर जैन में यह त्यौहार गणेश चतुर्थी के बाद तत्काल मनाते हैं। श्वेतांबर जैन गणेश चतुर्थी के दिन पहले से अपने आप को पूरी तरह से पवित्र रखते हैं तथा व्रत समाप्त होने के उपरांत क्षमा याचना करते हैं। दिगंबर जैन इस त्यौहार को पंचमी से प्रारंभ करते हैं तथा अनंत चतुर्दशी को क्षमा पर्व का समापन होता है। इन 10 दिनों का दिगंबर जैन धर्म में बड़ा महत्व है। इस अवधि में जैन बंधु अपने आप को मानसिक एवं शारीरिक रूप से बहुत स्वक्ष रखने का प्रयास करते हैं। उनकी कोशिश होती है कि इस अवधि में उनके द्वारा इसी प्रकार के जीव की हत्या ना हो। इसलिए जैन बंधु इस अवधि में हरी सब्जी आदि नहीं खाते हैं।अनंत चतुर्दशी के दिन मंदिर में जा कर पूजा करते हैं।उसके उपरांत हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से क्षमा याचना करता है। जिसमें यह कहा जाता है कि हमसे मनसा वाचा कर्मणा जो भी गलती हो उसे आप क्षमा करें। यह समाज में समरसता बनाए रखने का बहुत बड़ा पर्व है। साल भर के गिले-शिकवे इसमें दूर हो जाते हैं और समाज में एकता बनी रहती है।
पितृपक्ष प्रारंभ-
2 सितंबर से पितृपक्ष प्रारंभ हो रहा है। इस पक्ष में मृतक पूर्वजों को का श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध करने का अधिकार जेष्ठ पुत्र या नाती का होता है। श्राद्ध से तात्पर्य सम्मान प्रकट करना है। रामायण में भगवान राम ने भी गोदावरी नदी के तट पर राजा दशरथ और जटायु को तिलांजलि देने का उल्लेख है। यह पक्ष हमें अपने पूर्वजों का ध्यान करने को कहता है। उनकी अच्छी बातों को याद करने को कहता है तथा यह भी कहता है कि हम अपने कुल गौरव को बनाए रखें।
जीवित्पुत्रिका व्रत-
यह व्रत 10 सितंबर को पढ़ रहा है। इस व्रत को पुत्रवती स्त्रियां पुत्र की जीवन रक्षा के उद्देश्य से करती हैं। इस इस व्रत का स्त्री समाज में बड़ा महत्व है। इस व्रत को स्त्रियां निर्जल रहकर करती हैं। 24 घंटे के उपवास के बाद ही व्रत का पारण करती हैं। सप्तमी के दिन उड़द की दाल भीगोई जाती है। अष्टमी के दिन प्रातः काल स्त्रियां इनमें से कुछ गाने साबुत ही निकल जाती है। जिस दिन उड़द तथा गेहूं के दाने का बड़ा महात्व है। प्रतिदिन के खाने में सामान्य तौर पर उड़द नहीं लिया जाता है। अतः इसमें त्यौहार के उड़द दाल को इस्तेमाल करने का संदेश दिया जाता है, जिससे गठिया बवासीर आदि रोग ना हो सके।
मातृ नवमी-
11 सितंबर को मातृ नवमी है। ऐपित्र पक्ष की नवमी के दिन को मातृ नवमी कहा जाता है इस दिन को माताजी के याद में मनाया जाता है तथा किसी ब्राह्मण को खाना खिला कर दक्षिणा दिया जाता है।
एकादशी का व्रत-
13 सितंबर एवं 27 सितंबर को एकादशी का व्रत है। पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर को इस व्रत को करने का निर्देश दिया था। संक्षेप में अगर कहा जाए तो इस व्रत में व्यक्ति को सन्यासी जैसा आचरण करना चाहिए। अर्थात 1 दिन पहले से ही लहसुन प्याज मांस मदिरा आदि का सेवन बंद कर देना चाहिए। नींबू, जामुन या पान के पत्ते का सुबह-सुबह सेवन कर मुंह को साफ करना चाहिए। वृक्ष से पत्ता तोड़ना वर्जित है। ओम नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करना चाहिए। समस्त तरह से व्यक्ति को शुद्ध रहना चाहिए। इस बात का इस व्रत का शरीर विज्ञान से बहुत तगड़ा संबंध है। इस व्रत को करने से शरीर से पूरी नेगेटिव ऊर्जा निकल जाती है, पॉजिटिव ऊर्जा का संचयन हो जाता है।
अधिक मास प्रारंभ-
18 सितंबर से अधिक मास प्रारंभ हो रहा है। जिस मास में सूर्य संक्रांति नहीं होती है उसे अधिमास कहते हैं। जिसमें दो संक्रांतियां पड़ती हैं वह क्षय मास कहलाता है। अधिमास 32 महीने 16 दिन तथा चार घड़ी के अंतर से आता है। क्षय मास 141 वर्ष के बाद और तत्पश्चात 19 वर्ष के बाद पुनः आता है। लोक व्यवहार में इसे अधिक मास मलमास तथा पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। भारतीय कैलेंडर में दिनों को वर्ष के अनुसार मनाने के लिए अधिक मास आवश्यकता होती है।
प्रदोष व्रत-
15 सितंबर एवं 29 सितंबर को प्रदोष व्रत है। प्रदोष से तात्पर्य है रात्रि का प्रारंभ। प्रदोष पूजन का समय रात्रि में होता है अतः इसे प्रदोष व्रत कहते हैं। यह व्रत प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस व्रत का प्रारंभ सोम प्रदोष से किया जाता है। सोमवार के दिन पढ़ने वाले प्रदोष को सोम प्रदोष कहते हैं। इस व्रत में हरे मूंग के सेवन का विशेष महत्व है। हरा मूंग मंदाग्नि को शांत रखता है। हम जानते हैं की पेट समस्त रोगों की जड़ है। पेट ठीक रहेगा तो पूरा शरीर ठीक रहेगा। अतः इस व्रत के माध्यम से मूंग को खिलाकर व्यक्ति के पेट को ठीक करने का प्रयास किया जाता है।
पंडित अनिल पांडेय
ज्योतिषाचार्य