भीगे नयन, चेहरे पर झूर्री
बगल में खारा, हाथ में खूर्पी
बिना उपनही, मग खेत की
चलत जात, सोचत घर की
कैसे घर संसार चलाऊँ,
हरी घास कहाँ से लाऊँ
द्वारे बैल भुखं से बिलखैं
खाली कुथिला, अनाज को तरसैं
सुखा बिकट, नाश भै फसलें
तपता अंबर, चातक चीखें
सुखी सरिता, खाली पोखर
सुखे कुआँ, बनियां का डर
दीन-दशा देखो, किसान की
कैसी महिमा, करूणा निधान की,
सुखी घास, छील के लावे
कर सानी, खटाल ज़िवावे
सत्तु खा दिन रहा गुजार
महिनों बीते, बिन गये बजार
फटे हाल दिन रहा गुजार
कर फसल अगली का इंतजार
-वीरेन्द्र तोमर
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