श्रमवीरों का हो गया बुरा हाल
शहरों बने ऐसा भोंका खंजर
लौट के आने में लगेगा डर
घर भेज दो सरकार
मरते, कटते फिर रहे
घर की पकडी राह,
कोई साईकिल या पैदल
घर जाने की करे गुहार
भूखे-प्यासे डोल रहे हैं
बन गये देश में जोकर,
मालिकों ने मारी ठोकर,
अर्थव्यवस्था के कर्णधार
नशे के खातिर हो गये आकुल,
मज़दूर हो रहे व्याकुल
मज़दूर यूनियन गायब हो गयी,
बंद पड़े सब द्वार
सूनी देख के पटरी पर सोये,
मर गये रेल में कट कर,
बाहर निकलते पुलिस खाते
कोरोना से हम गये हार
माँ-बाप सब घर में चिंतित
बुरा हाल है रोकर
पैसा-कौड़ी मत कुछ दे दो
नहीं मिलता यहाँ उधार
घर पर जाके खेती करूँगा,
चलेगा घर-बार,
मत करो श्रामिकों की निन्दा
विकास के हैं आधार,
पैसा कमाया खतम हो गया,
रेल भाड़े का डालो भार,
देश में हो रहा हाहाकार
मजदूर करे पुकार
घर भेज दो सरकार
-वीरेन्द्र तोमर