जन्म मरण जीवन का चक्र
घटनाओं का बहाना है,
अस्त्र-शस्त्र निष्क्रिय हो
तब ईश्वर आखिरी सहारा है
मझधार में डूबती नाव
नाविक उम्मीद न खोये,
हाथ पांव चलाते ले प्रभु का नाम
नदी किनारा जोहे
कोशिश करता अंत तक जो
किस्मत उसी का उजियारा है,
गुगें बहरों का रखवारा
ईश्वर आखिरी सहारा है
धृतराष्ट्र की धर्म सभा में
जब द्रोपदी की लाज बच न पाई,
आखिरी सहारा ली हरि की
चीर खींचत दुःशासन थक जाई
गोह खींचे पांव गजराज की
गजराज पार न पाया है
आखिरी सहारा हरि सुमिरन किन्हा
तारनहार जीवन बचाया है
त्रिवेणी कुशवाहा ‘त्रिवेणी’