बिखेर कर किरणें आशा की..
निकलता है पल पल जलने को!
छलने को…
स्वयं के चर्म को नित्याकार!
जिससे पाता उजाला संसार!
घटाता यह तन-आकार!
करता रोशन धरा का रज-रज!
उगता हुआ सूरज!
ढ़लता है पहर बदल कर..
संध्या तक तपन सहता है!
चाँद, तारे, उल्काएँ, ग्रह सब..
छोड़ते सहारा,
ये नभ में अकेला ही रहता है!
हँसता है पंछियों को देखकर,
बच्चों के करतब को देखकर,
अठखेली करता है!
छुपता है घन पर्दे में,
ओटन कर भी चलता है!
सबको देता है अचरज!
उगता हुआ सूरज!
रोहताश वर्मा ‘मुसाफ़िर’
07 धानक बस्ती, खरसण्डी, नोहर,
हनुमानगढ़, राजस्थान-335523
संपर्क- 9784055613