क्या हवा है, क्या समय है
जैसे धरती अश्रुमय है
आज चिन्ता बादलो सी-
आदमी पर छा गयी है
मृत्यु का कोहराम देख,
जिन्दगी पथरा गई है
शून्य में कोई खो रहा,
निःशब्द सा मन हो रहा
हर गली के छत तले,
कोई अपना रो रहा
प्राण दुर्बल हो रहे हैं,
अपनो को हम खो रहे हैं
कल बिछडने की आशंका,
सिसकियो को ढो रहे हैं
प्राण का विश्वास क्या है?
कल का क्या उम्मीद करना?
यह सहज सांत्वना है,
आए हैं तो है गुजरना
अपनो को हम पास रखें,
अपनो के अब पास आएं
जाने कब जाना भी हो,
स्नेह का सागर लुटाएँ
अर्चना श्रीवास्तव