अब इतनी मज़बूरी होती नहीं मुझसे
और उसपर ये दूरी होती नहीं मुझसे
नाम मेरा उछलेगा तुम्हें कौन कहेगा
चोरी पे सीनाजूरी होती नहीं मुझसे
ज़माने में मेरी भी एक पहचान है
बेबात जी-हुज़ूरी होती नहीं मुझसे
प्यार है तो किसी सबूत की चाह नहीं
फिर ये मांग-सिंदूरी होती नहीं मुझसे
जो भी कहता हूँ साफ कह देता हूँ
सामने बात अधूरी होती नहीं मुझसे
आफ़ताब ढ़ल गया रौशनी चली गई
यों बनावटी सी नूरी होती नहीं मुझसे
रिश्ते-बेआधार धुरी होती नहीं मुझसे
‘उड़ता’ ऐसी मज़बूरी होती नहीं मुझसे
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल ‘उड़ता’
झज्जर, हरियाणा-124103
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