नैतिकता को बढ़ते देखा, प्रेमचंद के साये में।
प्रेम भाव को चढ़ते देखा, प्रेमचंद के साये में।
रंगभूमि से कर्मभूमि तक, कायाकल्प हुआ कितना,
प्रेमाश्रम में ढ़लते देखा, प्रेमचंद के साये में।
मनबंधों से टकराती थीं, मानसरोवर की लहरें,
भंवरों को फिर थमते देखा, प्रेमचंद के साये में।
दो बैलों की कथा अनूठी, ईदगाह की मिट्टी में
आँसू को भी झरते देखा, प्रेमचंद के साये में।
ठाकुर के कुएं से बचकर, परमेश्वर जब पंच हुए,
मंत्र फूँक तब अड़ते देखा, प्रेमचन्द के साये में।
मानवता का गबन हुआ जब, दान गाय का लेने को,
दृढ़ता को तब पलते देखा, प्रेमचंद के साये में।
सुमन निर्मला गायत्री संग, मिली सुभागी रतनारी
जिनको देवी बनते देखा, प्रेमचंद के साये में।
कथा कहानी में सच्चाई, नाटक में भी सच केवल,
जीवन को यूँ गढ़ते देखा, प्रेमचंद के साये में।
【कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द को उनके जन्मदिवस पर शत् शत् नमन】
श्वेता राय