बेटी: देवकी दर्पण

पीहरिया मं घणो सगो जे, सासरिया मं रावण होग्यो।
म्हानै हरक लुटाबाहाळो, अब ऊ बैरी सावण होग्यो।
रोकी पहली उछळ कूद सब, फेर इनै म्हारो मन मार्यो।
गीत सुणर उठता पगल्या मं, ऊ सावण ई दावण होग्यो।

सासरिया का मनख मनख क्यूं, दन’र रात ई चगद्यां जार्या।
बैठी कधी सुहाई कोनै, घर धन्दा मं रगद्यां जार्या।
लेली मोल जस्यां रुपया गण, याको नत बरताव अस्यो।
मनख गणी न या मनख्यां नै, नत ढ़ाडा ज्यू झगद्यां जार्या।

आंधा बसवासां की ज्यामै, डाटां की नज आट्यां घुळरी।
खोलू कस्यां बाईटा आज्या, घणी पराणी गाठ्यां घुळरी।
शिक्षा बना समाज हाल बी, असली खुसी पकड़ न पार्यो।
रन्धी दाळ सूं मलबा लेखै, सकी सकाई बाट्यां घुळरी।

देवकी दर्पण
काव्य कुंज, रोटेदा,
बून्दी, राजस्थान-323301
मोबाइल- 9799115517