किसका टूटा नहीं घमंड।
किसका चमका तेज अखंड।
कौन थूक कर चाट रहा है
बकता फिरे अंड या बंड।
शेर नहीं, पालतू श्वान हैं
टुकड़े खाकर हैं मुसटंड।
मुँह लटकाए बैठे किन्नर
काँपें पौरुष देख प्रचंड।
धन्य धन्य भारत की नारी
जिसके फड़क रहे भुजदंड।
पैसे लेकर लड़ने आए
भागे नकली संड – मुसंड।
एक एक सारे अपराधी
पाएँगे अब भीषण दंड।
दनुजों का संहार करेंगे
श्रीराम लेकर कोदंड।
ऊपर वाले की लाठी से
लगती चोट, गर्म न ठंड।
हर हर महादेव स्वर सुनकर
गुंडों का है जीवन झंड।
सूरज के आगे जुगनू का
क्या टिक पाएगा पाखंड।
गौरीशंकर वैश्य विनम्र
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