मैं भारत का एक अभागा,
मेहनतकश किसान हूँ,
पीड़ित, और शोषित हूँ
पर एक जिंदा इंसान हूँ
मेरे पसीने की कीमत से,
मैं खुद ही अंजान हूँ,
भरकर अन्न धन्ना धरा पर,
मां भारती की संतान हूँ
सावन,भांदो,या हो आषाढ़,
हर मौसम का मितान हूँ,
मेहनत का कीमत न मिलता,
मैं दुखी इंसान हूँ
मेरी अपनी हक की लड़ाई से,
गोली का शिकार हूँ,
राजनीति के बहती धारों का,
बीच का एक मझधार हूँ
मेहनत तो खूब करता हूँ पर,
लाखों का कर्जदार हूँ,
मेरे अपने हालात पर,
आज भी शर्मसार हूँ
अन्नादाता होकर भी मैं,
खुशहाली का मोहताज हूँ,
कल भी दुर्दशा थी मेरी,
वहीं बदहाली में आज हूँ
जयलाल कलेत
रायगढ़, छत्तीसगढ़