मिलिए खूबसूरत और आत्मविश्वास से भरपूर “शनाया” से
तुम सबकी जिससे नजर नहीं हट रही
देशी घी की सोंधी ख़ुशबू और गुड़ के रवों में
करीने से लिपटी वही मिठाई हूँ मैं
दुर्भाग्य जिस चौखट पर आकर लौट जाए
वो ही सौभाग्यशाली नारी शक्ति हूँ मैं
अपनी तोतली जुबान व निश्छल प्रेम से
कुछ ही क्षण में सबों को अपना बना लूँ
मन के भावों की वो खूबसूरत पिटारी हूँ मैं
मैं ही तो हूँ उस चरम शाश्वत
नैसर्गिक सुंदरता की प्रतिमूर्ति
ईश्वर का वो अप्रतिम उपहार मैं ही हूँ
गुलाब की कोमल नाज़ुक पंखुड़ियों पर..
उषाकाल के ओस की पहली बूंद
मैं ही तो हूँ
सूर्य की पहली किरण के साथ
हाँ आप सबों की प्यारी
“शनाया” मैं ही तो हूँ
स्नेहा किरण
युवा कवयित्री एवं सामाजिक कार्यकर्ता