उसके करम का अब्र बरसता दिखाई दे।
जख्मों का सिलसिला भी हँसता दिखाई दे !!
खुद से ही बड़कर कोई न अच्छा दिखाई दे
हमको तो ऐसे जहन में कचरा दिखाई दे!!
खोलेगा नया एक फिर वो ही तो देखना
तुझको अगर कोई बंद दरवाजा दिखाई दे!!
उसकी नज़्र में आये तो इतना भी समझ लें
उलझन का तामझाम सुलझता दिखाई दे।
हमने जो कहा उससे बढके कौन कहेगा
दुनिया में रोजो शब ये तमाशा दिखाई दे!!
आये हैं उसको खोजते सहरा ओ दश्त मे
जिसका न रंग -रुप ,न चेहरा दिखाई दे!!
खाली सा हो चला था गम का जाम,दोस्त
तेरी नवाजिशों से फिर भरता दिखाई दे!!
ओ दौरे तरक्की ,तेरे इलहाम के चलते,
इस दौर का बच्चा भी सयाना दिखाई दे!!
उससे ही बहुत दूर जा बरसात हो रही
पानी को जिसका हलक तरसता दिखाई दे!!
-सुधीर पाण्डेय व्यथित