आलस मनुष्य का शत्रु है,
आलस से कोई काम सिद्ध नहीं होता है।
आलसी को कोई पसंद नही करता,
वह भार स्वरूप होता है।।
आलस का मार्ग मृत्यु की ओर ले जाता है,
आलसी व्यक्ति मरे हुए के समान है।
वह अपना हित नहीं समझ सकता,
दूसरे के हित को कैसे समझेगा?
कविता– मैं ही सीता, मैं ही दुर्गा: प्रियंका त्रिपाठी
अकर्मण्यता को त्यागकर,
करो तुम कुछ काम।
हाथ पर हाथ धरना आलस है,
आलस में नहीं है सुख।।
आज का काम कल पर न टालो,
मत बनो प्रवृत्ति के गुलाम।
रोज का काम रोज करो,
जीवन हो जाएगा आसान।।
कविता– ध्रुवतारा बन जाएंगे: प्रियंका पांडेय त्रिपाठी
सकंट आने पर हम काम करें,
इससे अच्छा है।
कि काम करने की आदत डालें,
जिसमें असली सुख है।।
प्रियंका पांडेय त्रिपाठी
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश