वो जो मेरे कहने पर,
मेरी हर ज़िद को ना चाहते हुए भी पूरी करते हैं
मेरे हिस्से का हर अल्फ़ाज़,
औरों से वो सुन लेते हैं
मेरी गलतियों को नजरअंदाज कर,
फिर भी मुझे अपने कलेजा का टुकड़ा बनाए रखते हैं
अपने सम्मान को संभालने की जिम्मेदारी,
मेरे गैर जिम्मेदार हाथों में सौंप जाते हैं
लोगो को वो मुझे,
अपना स्वाभिमान बतलाते हैं
मेरे कदमों की आहट ना मिलने पर,
बेचैन से हो जाते हैं
मेरे दुख-सुख में,
बिन कहे मेरा साथ दे जाते हैं
उनके कर्मों का संघर्ष और हृदय की गहराई,
मुझे धैर्य की सीमा में रहना सिखलाते हैं
बन्द आंखों से कर विश्वास,
रोक टोक की पाबंदियां मुझ पर कभी न लगाते हैं
हां वही
भगवान का मुझे दिया सुनहरा उपहार है,
जो मेरी ज़ुबां के लफ़्ज़ों से पापा कहलाते हैं
पूजा कुमारी
बीए छात्रा, पीजीजीसीजी-42
चंडीगढ़