वाकई प्यार डिजिटल हो गया
पर भावनाएं कभी डिजिटल नहीं हो सकती
क्योंकि बिन देखे, बिन छुए
तुम इस दिल में धड़कते रहे
दुनिया ने जी खोल के मज़ाक उड़ाया
ये कौन सा प्यार है
जो मोबाइल के की बोर्ड से शुरू होकर
उसी पे खत्म होना है
हाँ उसी पे खत्म होना है ये प्यार
नहीं लिखे मैंने कोई खत तुमको
नहीं उड़ाए मैंने इश्क़ वाले कबूतर
नहीं चूम पाई कभी तुम्हारी लिखावट को
पर जानते हो हम उस दौर से भी गुज़रे
जब तुमको मैसेज टाइप करने में
आंसू स्क्रीन पे टपकते थे
और दुपट्टे के कोर से हम
मोबाइल भी पोछते और आँखें भी
हाँ डिजिटल प्यार ही तो था वो
जब पहली बार देखा था
तुमको वीडियो कॉल पे
और आँखें छलक आयी थी मेरी
लगा था आंखों को आज पहली दफा
सुकून मिला हो
नहीं देखा तुमको छूकर कभी
खैर! तुम पास भी होते तो
कौन सा छूना था तुम्हें
पर जी भर महसूस किया है तुम्हें
और उस कमरे को जहां तुम बिस्तर पे बैठ के
मुझसे हज़ारो बातें किया करते थे
नहीं छोड़े मैंने तुम्हारी शर्ट की पॉकेट पे
अपनी लिपस्टिक का निशान
मगर लिपस्टिक भी तो
तुम्हारी पसंद का लगाया करते थे
नहीं चूमा तुमने मेरे माथे की बिंदी को
मगर वो छोटी सी काली बिंदी में
मेरी तस्वीर तुमको बहुत पसंद थी
ऐसी हज़ारो बातें थी
जो दिल को बेचैन करती थी मेरे
प्यार डिजिटल हो सकता है
पर दिल अब भी वही है
जो धक-धक करता है
तुम्हारे नाम से
रूची शाही