मन की व्यथा के कड़वे सत्य को
शब्दों के ज़रिए कागज पे बिखेर रही
लिख रही, मन मसोसकर
अंतस की टीस चीख रही
कहने को सब कहते हमें
दिल की तू साफ बहुत
फिर भी, मेरे व्यक्तित्व पर
क्यूँ लगते भीषण आरोप
मन में ना कोई मैल रखकर
निश्छल भाव से कर्तव्य निभाई
ऐसी-वैसी सब की बात सुन कर
कर्म पथ पर, प्रेम सहित डटी रही
सकारात्मकता की छांव तले
मन में अपने निश्चय विश्वास भरी
अपने पराए संबंधों के लिए
सदा हृदय में नव अंकुर उगायी
हृदय में परत दर परत
आरोपों के हस्ताक्षर क्यूँ
स्वयं पे लगे आरोपों को
कैसे मैं खारिज कर सकती
ईंट-शिला जैसे बोल सबके
मौन खड़ी मूरत बनकर
सबकी होशियारी के आगे
बुद्धि मेरी वेगहीन हुई
प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश