ये हँसते खेलते चेहरे देखो कैसे,
धरती में हैं गढ़ गये
ये चीखती सांसें देखो कैसे
मौत की शांति में हैं बदल गये
रोते-बिलखते परिवार देखो कैसे,
लड़ रहे हैं, हालातों से
वो बैठे कुर्सियों पर देखो कैसे,
पट्टी बांधे आँखों पर
प्रजातंत्र का दौरा था, यह तो.
फिर क्यों आवाम बिलख रही।
निज़ाम तेरे राज में
जाने कहां व्यवस्था मर गई
बिछा कर तुम लाशों का ढेर
क्या खाक राज चलाओगे।
निज़ाम जरा ये बताओ
अलगी बार क्या लाशों से वोट मांगने आओगे?
छल करके मासूमों से,
क्या इतिहास को मुंह दिखाओगे ?
जिस आवाम के जीवन का,
रैलियों के आगे कोई मोल नहीं
उन लाखों जिंदगियों का बोलो,
क्या कर्ज उतार पाओगे?
गंगा भी जिसे धो न सके वो
पाप तुम आखिर कैसे मिटाओगे
निज़ाम जरा बताओ
क्या मुर्दों से अपना महल सजाओगे
हो जाएगी जब शवों से यह धरती बंजर,
तब क्या नाखूनों से ज़मी खुरच पाओगे
निज़ाम जरा ये बताओ हमको
अगली बार क्या लाशों से वोट मांगने आओगे?
प्रियंका गुप्ता
नई दिल्ली