बस तेरी कमी रहती है: रूची शाही

मुझसे ज्यादा, कोई और उसे भाता है
उसका चेहरा मुझे गैरों में नजर आता है
बेशक कोई रस्मो-राह न रहा हो उससे
मगर ये दिल उसी की राह चला जाता है

* * *

ये जो आँख मेरी छलकी-छलकी सी रहती है
तुमको क्या बतलाऊँ इसमें कितनी नमी रहती है
सारे सुख, जीवन एक तरफ मैं रख देती हूँ
और एक तरफ मुझको बस तेरी कमी रहती है

* * *

जैसे-तैसे अब ये जीवन काट रहे हैं
बची-कुची हुई सांसों को छाँट रहे हैं
तुमको कहाँ फुर्सत कि तुम पूछो हमसे
हम अपनी तन्हाई कहाँ बाँट रहे हैं

रूची शाही