काश सब की दुआ सुनी जाए
खाली झोली नहीं कोई जाए
क्या ज़रूरी है दर्द की दौलत,
बारहा मेरे नाम की जाए
हाए जाने ये इन अँधेरों की,
कब उजालों से दुश्मनी जाए
चाह सागर को भी हो मिलने की,
हर दफा क्यों भला नदी जाए
बन ही पाए नहीं किसी सूरत,
बात इतनी बड़ी न की जाए
मुद्दतों से सिए है होठों को
उसके दिल की कभी सुनी जाए
अब तो कम होने के आसार नहीं,
दर्द ये मेरे साथ ही जाए
क्या समझ बैठे वो सियासत को,
फिर इबारत जरा पढ़ी जाए
-पूनम प्रकाश