डॉ मयंक चतुर्वेदी
भोपाल (हि.स.)। देश में महिलाएं शिक्षा, स्वास्थ्य, देखभाल तथा राजनीतिक और आर्थिक अवसरों के माध्यम से लगातार प्रगति और विकास में अपना भरपूर योगदान दे रही हैं। कई क्षेत्रों में भले ही महिलाओं की स्थिति ठीक या अच्छी हो, लेकिन राजनीति में यह कभी भी 20 प्रतिशत भी अपना योगदान जनप्रतिनिधि के रूप में नहीं दे पाई हैं। ऐसे में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा संसद में ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ रखा गया तो तमाम असहमतियों के बीच सहमति बन गई और देश में 33 प्रतिशत आरक्षण का रास्ता संसद में महिलाओं के लिए खोल दिया गया। अब यह अलग बात है कि विधि के अनुसार इसको अमलीजामा पहनाने में दो कार्य आवश्यक रूप से किया जाना अभी शेष हैं, जनगणना और परिसीमन, फिर भी इस बार के लोकसभा चुनाव के परिणाम संसद में महिला प्रतिनिधित्व के मामले में बहुत कुछ कह रहे हैं।
फिलहाल, इस संबंध में बात मध्य प्रदेश की करते हैं, जिसने मोदी सरकार की इच्छा को जमीन पर साकार कर दिखाया है। एक तरफ देश के कई राज्यों में लोस चुनावों के दौरान महिला प्रतिनिधित्व कम देखने को मिला और जहां राजनीतिक पार्टियों ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया भी तो अधिकांश स्थानों से जनता ने उन्हें संसद तक नहीं पहुंचाया। लेकिन मप्र में देश के औसत अनुपात से कहीं अधिक महिलाओं को 20 प्रतिशत से ज्यादा संसद में भागीदारी सुनिश्चित की गई और शत प्रतिशत यह भागीदारी उन्हें मिले, इसके लिए जमीन पर कार्य भी हुआ।
दरअसल, जिन छह महिलाओं को राज्य में भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया, वे सभी बड़े अंतर के साथ विजय होकर संसद सदस्य बन गई हैं। पहले शिवराज सिंह चौहान और अब डॉ मोहन यादव, दोनों के मुख्यमंत्रीत्वकाल में महिलाओं के सशक्तीकरण की दिशा में राज्य तेजी से आगे बढ़ता हुआ दिख रहा है। वैसे हर राज्य की तरह मप्र में भी चुनौतियां कम नहीं हैं, किंतु इसके बावजूद लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण के प्रति सरकार की अटल प्रतिबद्धता और राज्य में कई जनकल्याणकारी योजनाओं ने महिलाओं के बीच आशा की किरण जगा रखी है। यही कारण है जो राज्य के बालाघाट से पहली महिला सांसद चुनी गईं। यहां के सागर में 44 साल बाद महिला संसद पहुंचीं हैं।
मप्र की जनता ने धार से सावित्री ठाकुर, शहडोल से हिमाद्री सिंह, सागर से लता वानखेड़े, भिंड से संध्या राय, बालाघाट से भारती पारधी और रतलाम से अनीता नागर सिंह चौहान को अपना जनप्रतिनिधि चुना है। देखा जाए तो यह महिला आरक्षण कुल 29 सांसदों में 06 की संख्या से देखें तो 20.68 प्रतिशत है। जबकि इस वक्त जितनी महिला सांसद 74 की संख्या में चुनी गई हैं, उसका राष्ट्रीय औसत 13.62 है। यानी कि इस बार की 18वीं लोकसभा के लिए जीतकर आईं राज्यवार महिला नेताओं की स्थिति में मध्य प्रदेश ने अच्छा काम किया है। यदि मप्र की तुलना दूसरे राज्यों से करें तो आंकड़े कुछ इस प्रकार के सामने आते हैं। इस बार के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में महिला सांसदों की हिस्सेदारी घटी है। 80 लोकसभा सीटों में सिर्फ सात महिला सांसद बन पाईं। इनमें मथुरा से हेमामालिनी (भाजपा), मीरजापुर से अनुप्रिया पटेल (अपना दल सोनेलाल), मैनपुरी से डिम्पल यादव (सपा), बांदा से कृष्णा पटेल (सपा), मछलीशहर से प्रिया सरोज (सपा), मुरादाबाद से रुचिवीरा (सपा) और कैराना से इकरा हसन (सपा) शामिल हैं।
महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं, यहां प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा 17 महिला उम्मीदवारों में चुनाव लड़ाया गया, जिसमें से सात विजयी हुईं। गुजरात में चार महिला उम्मीदवार विजयी हुई हैं। कर्नाटक से तीन महिला प्रत्याशी लोकसभा में राज्य का प्रतिनिधित्व करेंगी।
देश की राजधानी दिल्ली ने इस बार 02 महिलाओं को संसद पहुंचाया है, जिसमें भाजपा की दिवंगत नेता सुषमा स्वराज की पुत्री बांसुरी स्वराज चर्चाओं में बनी हुई है। वेस्ट बंगाल में लोक सभा की 42 सीटें हैं, यहां से 11 सीटों पर महिलाओं को जीत मिली है। बिहार में पच्चीस वर्षों के बाद पांच महिला सांसद होंगी। राजस्थान से 03, ओडिसा से 04, असम से 01, झारखण्ड से 02, पंजाब से 01, छत्तीसगढ़ से 03, हरियाणा से 01, उत्तराखण्ड से 01, त्रिपुरा से 01 महिला सांसद चुनी गई हैं।
दक्षिण के राज्यों की बात करें तो तमिलनाड़ से 05 महिलाएं संसद तक पहुंची हैं। आंध्र प्रदेश से 03, तेलंगाना से 02, कर्नाटक से 03 सांसद महिला चुनी गईं लेकिन वहीं केरल की जनता ने एक भी महिला को अपना जनप्रतिनिधि नहीं चुना। इधर, पहाड़ी क्षेत्रों में जम्मू कश्मीर भी खाली रहा है। यहां 42 फीसदी महिला वोटरों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक भी महिला सांसद नहीं है। पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में अब लोकसभा की दहलीज लांघने वाली चार बार की राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता कंगना राणौत सांसद बनी हैं।
इनके अलावा देश में अन्य 08 राज्यों से एक भी महिला प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पायी है। अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मणीपुर, मेघालय, नगालैंड, मिजोरम और सिक्किम ने एक महिला उम्मीदवार का नारी वंदन नहीं हुआ है। इसी तरह से अंडमान निकाबार, दादर नगर हवेली, लद्दाख, लक्षद्वीप, पुडुचेरी से भी कोई महिला प्रतिनिधित्व नहीं है।
अब उम्मीद करें कि नई एनडीए सरकार में देश में जनगणना करा ली जाएगी और 2026 के बाद विधानसभा और लोकसभा सीटों का परिसीमन हो जाएगा, जिसके बाद संसद में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण लागू होता हुआ पूरी तरह दिखेगा। फिलहाल तो ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ (कानून) के सबसे नजदीक देश में अपने जनसंख्यात्मक अनुपात में मध्य प्रदेश राज्य ही सबसे आगे नजर आ रहा है।