जिंदगी के लिये बंदगी के लिये
है जरूरत करो प्रेम की साधना
सादगी से भरी तिश्निगी के लिये
बिन महूरत करो प्रेम आराधना
नील नभ में खिली चाँद की चाँदनी
अंजुमन में छिड़ी प्यार की रागिनी
तार छिड़ने लगे राग अनुराग के
जब सितारे खिले सज गयी यामिनी
नेक परिवेश में नेह आवेश में
बलवती हो उठी प्यार की कामना
बिन महूरत करो प्रेम आराधना
भागते हैं सभी माधुरी प्रीत को
चाहते हैं सभी आखिरी जीत को
आँजुरी में भरे प्यार के फूल कुछ
मानते हैं सभी बावरी रीत को
खुल गया आवरण हो रहा जागरण
उर शिखर छू रही मधुमयी भावना
बिन महूरत करो प्रेम आराधना
नीर पाकर मचलती रही है नदी
बह रही है अभी झेलकर त्रासदी
चैन पाना उसे सिंधु की गोद में
ये अभीप्सा लिये हो गयी इक सदी
जो तपस्या करे पुण्य मिलता उसे
यदि समाहित रहे मीत संचेतना
बिन महूरत करो प्रेम आराधना
-डॉ उमेश कुमार राठी