उधारी पर ही यारों हर ख़ुशी है।
मगर हाँ दर्द इक इक पेशगी है।
महक, लज़्ज़त, तसल्ली ढूंढते हो,
अमां चाय नहीं, ये ज़िंदगी है।
बताओ रोकें या ना रोकें इसको,
तमन्ना ख़ुदकुशी पर आ गई है।
नज़र खामोशियाँ या फिर ये आंसू
किसी ने की यक़ीनन मुखबिरी है।
सुनाई दे रहीं हैं धड़कने क्यों,
बड़े खतरे में अपनी बेख़ुदी है।
ज़रा देखो तो किसके नक्शे-पा थे,
दहाने पर ये दुनिया आ गई है।
मुझे तूफ़ान धमकी दे रहा है
नदी आँखों की मेरी हंस रही है।
-पूनम प्रकाश