उडत गुलाल बरस रहो रंग।
खेलैं होली सखा सब संग।।
बना के टोली करैं ठिठोली,
मारैं पिचकारी भर-भर रंग।
ढोल मंजीरा पै ताल लगावैं,
खावैं फोड़-फोड़ के भंग।
ठुमक-ठुमक के नाच दिखावैं,
गावैं फाग फेंक के रंग।
गांव की गोरी गुलाल लगावैं,
खिलावैं गुझिया भर-भर रंग।
भेदभाव कछु पार न पावै,
बजावैं घूम-घूम मृदंग।
कहत रसिक कछु रास न आवै,
मचावैं सबै बहुत हुड़दंग।
मन कैं अपने रोक सकैं न,
लगावैं किसको कौन सो रंग।।
-राम सेवक वर्मा
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विवेकानंद नगर, पुखरायां,
कानपुर देहात, उत्तरप्रदेश